।। योगः कर्मशु कौशलम् ।।
योग हमारे शरीर के बाहरी व आन्तरीक अर्थात् शारीरिक मानसिक व आत्मिक स्तर को नियंत्रित करनें और शरीर मन व आत्मा को सम्पूर्ण कुशलता के साथ जोड़नें का सर्वश्रैष्ट साधन हें ।
योग आज पूरे विश्व में विख्यात हो रहा हैं, अतः योग को स्वयंम् से जोड़ने के बजाय हमें अपनी सीमाओं से बाहर आने कि आवश्यकता हैं ।
योग अमृत का सागर हैं और हम अपनी सीमाऔं कि दिवारों के अन्दर कैद हो रहें है हमें एक बार इस कैद से बाहर आने कि आवश्यकता हें योग आपसे स्वतः जुड़ जाऐगा ।
योग में 8 अंग है, अतः अष्टांगः योग ।।
यह हैं :-
१- यम ,२-नियम ,३-आसन ,४-प्राणायाम ,५-प्रत्याहार ,
६-धारणा ,७-ध्यान ,८-समाधी ।
योग एक नजर में ईन्ही 8 अंगो जितना लगता होगा परन्तु योग किसी सीमा में नहीं बंधा हैं यह व्यापक अखण्ड अमृतमय तथा समस्त सृष्टि का मूल हैं ।
योग के प्रकार - सम्यक् योग ,कुण्डलीनी योग ,हठ योग ,राज योग ,सांख्य योग ,अष्टांग योग और आधुनिक समय में Hot yoga ,pawer Yoga etc.
योग के अन्तिम तीन अंगो - धारणा ,ध्यान ,समाधी को त्रयमेकत्र् संयम् कहते हें ।
संयम के द्वारा ही लोग Hipnotism , mesmerism ईत्यादि कार्य करते हैं।
योग के द्वारा मनुष्य अपने जीवन की हर सम्भावनाओं को जान सकता हैं ।
अतः हम अभी योग कि दृष्टि में स्वंयम् के बारे में 1फिसदी भी नहीं जानते क्योंकी हम सब उस ज्ञान के आधार पर अपने जीवन के हर पहलू के साथ समझौता करते है जो ज्ञान हमें इसी संसार के किसी स्थान पर जन्म से अब तक प्राप्त होता हैं लेकिन इस ज्ञान को हम अपनी विशूद्ध स्पष्ट स्थिर अखण्ड बुद्धि से योग के द्वारा स्थिर होकर साधना करें तो हम जूड़ सकते हैं।
वह बुद्धि जो समस्त ब्रह्माण्ड को संचालित व नियंत्रित करति हैं ,उस बुद्धि से जुड़ने का एकमात्र साधन योग हि हैं।
about of Yoga. |
योग हमारे शरीर के बाहरी व आन्तरीक अर्थात् शारीरिक मानसिक व आत्मिक स्तर को नियंत्रित करनें और शरीर मन व आत्मा को सम्पूर्ण कुशलता के साथ जोड़नें का सर्वश्रैष्ट साधन हें ।
योग आज पूरे विश्व में विख्यात हो रहा हैं, अतः योग को स्वयंम् से जोड़ने के बजाय हमें अपनी सीमाओं से बाहर आने कि आवश्यकता हैं ।
योग अमृत का सागर हैं और हम अपनी सीमाऔं कि दिवारों के अन्दर कैद हो रहें है हमें एक बार इस कैद से बाहर आने कि आवश्यकता हें योग आपसे स्वतः जुड़ जाऐगा ।
योग में 8 अंग है, अतः अष्टांगः योग ।।
यह हैं :-
१- यम ,२-नियम ,३-आसन ,४-प्राणायाम ,५-प्रत्याहार ,
६-धारणा ,७-ध्यान ,८-समाधी ।
योग एक नजर में ईन्ही 8 अंगो जितना लगता होगा परन्तु योग किसी सीमा में नहीं बंधा हैं यह व्यापक अखण्ड अमृतमय तथा समस्त सृष्टि का मूल हैं ।
योग के प्रकार - सम्यक् योग ,कुण्डलीनी योग ,हठ योग ,राज योग ,सांख्य योग ,अष्टांग योग और आधुनिक समय में Hot yoga ,pawer Yoga etc.
योग के अन्तिम तीन अंगो - धारणा ,ध्यान ,समाधी को त्रयमेकत्र् संयम् कहते हें ।
संयम के द्वारा ही लोग Hipnotism , mesmerism ईत्यादि कार्य करते हैं।
योग के द्वारा मनुष्य अपने जीवन की हर सम्भावनाओं को जान सकता हैं ।
अतः हम अभी योग कि दृष्टि में स्वंयम् के बारे में 1फिसदी भी नहीं जानते क्योंकी हम सब उस ज्ञान के आधार पर अपने जीवन के हर पहलू के साथ समझौता करते है जो ज्ञान हमें इसी संसार के किसी स्थान पर जन्म से अब तक प्राप्त होता हैं लेकिन इस ज्ञान को हम अपनी विशूद्ध स्पष्ट स्थिर अखण्ड बुद्धि से योग के द्वारा स्थिर होकर साधना करें तो हम जूड़ सकते हैं।
वह बुद्धि जो समस्त ब्रह्माण्ड को संचालित व नियंत्रित करति हैं ,उस बुद्धि से जुड़ने का एकमात्र साधन योग हि हैं।
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