Why is yoga required? योग की आवश्यकता क्यों है? Needs of Yoga

योग की आवश्यकता/Need's of Yoga
Need's of Yoga

                ।। योगः कर्मशु कोशलम् ।।

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योग कि आवश्यकता क्यो हैं?


क्या योग शारीरिक मानसिक शांति और स्वास्थ्य के लिए ही हैं,या इस से अलग तथा असीमित सम्भावनाऔं से जुड़ने व जोड़ने का साधन हैं।

योग हमारे जीवन के हर मूलभूत पहलुओं से जुड़ने तथा उन पहलुओं कि हर समस्याऔं को हल करनें का अचूक साधन है।

वर्तमान समय में समाज को योग से जुड़ने कि आवश्यकता हैं,क्यों कि समाज में बहुत प्रकार की विकृतीयां आ गयी हैं, जैसे-समाज में बिखराव, अंधविश्वास, अस्वस्थ समाज, नशा, बलात्कार, हत्याऐं, ईर्ष्या, लालच(तृष्णां), दुर्व्यवहार, वृद्धों कि उपेक्षा,  कलह, तनाव, आत्महत्या, अज्ञानता, संवैदन हिनता, संघर्ष(बिना वजह), शारीरीक मानसिक अशांति, डर तथा जीवन में असन्तुलन , अस्थिरता, अस्पष्टता, भय, रोग, जरा, मृत्यु, अशुन्दरता, मानसिक दुर्बलता, हृदय हीनता,  एकता का अभाव इन सभी प्रकार कि विकृतियों के दलदल से समाज तथा मानवजाती को बाहर निकाल कर उन्हें इस प्रकृति ,जीव-जन्तु,तथा इस ब्रह्माण्ड कि universal power से जोड़ने के लिए योग हि एकमात्र विकल्प हैंं ।

योग के द्वारा सामाजिक,वैज्ञानिक,आध्यात्मिक,शारीरिक,मानसिक,और आत्मिक रूप से शक्तिशाली होकर विज्ञान को आध्यात्मिक शक्ति से जोड़कर नई संम्भावनाऔं का पता लगाया जा सकता हैंं।

      1. योग - एक विद्या (Technique)
      2. शरीर-एक साधक
      3. योग के 8 अंग- यम, नियम,                            आसन,प्राणायाम,प्रत्याहार                               धारणां,ध्यान,                                                समाधी- इनके द्वारा साधक साधना                                करके अपनें जीवन के मूल                               रहस्यों को जान सकते हैं।
      4. योग के द्वारा कुण्डलीनी शक्ति को जागृत किया जाता है तथा सम्मोहन,आकर्षण,वशीकरण,दिव्य दृष्टी, अष्ट सिद्धि ,टेलिपैथि,कायागमन,super power awakening, third eye awakening,अदृष्य होना,ब्रह्माण्ड का समस्त ज्ञान प्राप्त करना ईत्त्यादि।


★यम-नियम:-ईनके द्वारा सामाजिक जीवन को निर्मल संतुलित स्पष्ट किया जाता हैंं।




★आसनः प्राणायामः :-ईनके द्वारा शारीरीक रूप से स्वस्थ मजबूत निर्मल व सन्तुलित तथा स्पष्ट होते हैं।            




★प्राणायामः प्रत्याहार धारणा व ध्यान:- मानसिक रूप से मन को स्वस्थ शान्त स्थिर व स्पष्ट किया जाता है।


★धारणां ध्यान समाधी(त्रयमेकत्र् संयम्ः):-धारणा+ध्यान+समाधी=संयम्ः :-संयम के द्वारा मन रुपी अश्व को शरीर रूपी साधन से योग विद्या द्वारा स्थिर करके आत्मा(चित्त)में प्रवेश कराया जाता हैं।


जब चित्त को साध लीया जाता है तो हमारा शरीर मन आत्मां हमारे वश में हो जाता हैंं।

अब शरीर मन आत्मां से अलग हमारा क्या अस्तित्व हैं, हम एक ऊर्जा के रूप मैंं हैं यह ऊर्जा मन के वश में रहती हैं।

 लेकिन जब हम योग को अपने साथ में लेकर चलते हैं तो यह मन व शरीर तथा आत्मा हमारे अर्थात्  ऊर्जा के वश में हो जाता है, हम(ऊर्जा या शक्ति) इस मन को स्थिर करके (संयमः के द्वारा) by meditetion,अपने आन्तरीक खजाने को जाना जाता है, उसका उपयोग हम अनेक प्रकार के कार्यों को करने मैं किया जाता है।

सृष्टि की रचना करने वाली शक्ति तथा ग्रहों, तारों ,उल्काओं, पिण्डों,आकाश,आकाशगंगाओं, क्षूद्र ग्रहों,तथा पृथ्वी पर जीवन ,वनस्पति,जीव-जन्तु,सर्दी,गर्मी,वर्षा,वायु, जल,अग्नि,इनकी उत्त्पत्ति या विनाश इत्त्यादि का पूरी तरह संचालन निर्देशन व नियंत्रण करने वाली अखण्ड असीमित स्थिर और स्पष्ट ब्रह्म बूद्धि से जुड़ने के लिए तथा इस ईश्वरीय शक्ति को प्राप्त करके अनेक अकल्पनीय कार्य को करनें के लिए योग ही एक मात्र साधन हैंं ।

हमारे देश(भारत/India)में प्राचीन समय में अनेक योगी हुए जिनमें से एक महर्षि पातन्जली हैं आपने हि योग सूत्र कि रचना की जो हमारे लिए बहुत ही अनमौल रत्न के समान है।

प्राचिन समय में गुरुकुल में ब्रह्मचर्यः आश्रम(5 से 25 वर्ष) में योग, वैद ,पूराणों, तथा युद्ध का ज्ञान व अनेक प्रकार का ज्ञान दिया जाता था।

 प्राचिन समय में योग जीवन के साथ एक अंग कि तरह से जुड़ जाता था लेकिन अब इस तरह नहीं होता हैंं।




योग की सहायता से विज्ञान के क्षेत्र में बहुत सटीक जानकारी प्राप्त की जा सकती हैं ।


लेकिन वैज्ञानिक दृष्टिकोण में योग को लेकर केवल इतना ही अनुभव है कि यह योग केवल शारीरीक मानसिक स्वास्थ्य को सहि रखा जा सकता हैंं।

अगर वैज्ञानिक भी योग को साथ लेकर अनुसंधान करे ।

तथा इस के मूल रहस्यों को जानकर अपनाकर अपनें शोधौं कि जाँच करें तो 100% पूर्ण सटिकता प्राप्त की जा सकती हैं।

 लेकिन ऐसा लगता है कि योग तो वैज्ञानिक सोच को लेकर चलता रहेगा।

 पर विज्ञान योग से अलग रह कर कार्य करता रहेगा और कभी अपनेंं लक्ष्यों को हासिल नहीं कर पाऐगा ।

अंततः पृथ्वि व समस्त संसार को विनाश की ओर ले जाऐगा।

                  " मैंंरा यह लक्ष्य है कि मैं स्त्रियौं व पूरुषौं तथा पूत्रों-पूत्रीयों में इस बात की जागृति कराऊँ की योग को अपने जीवन के अंग कि तरह से जोड़कर अपने शरीर को स्वस्थ और मन को विषय वासनाऔं,तृष्णा, हिंंसा से हटाकर मन को अन्तर्मुख करें तो अपने अखण्ड खजानें को जान सकते हैं "
                                                            "मुकेश कुमार"


  • To Be continue..........





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