What is Yama Niyama in Yoga | योग में यम नियम क्या है? योग : यमः

  1.  यमः 

          योगः कर्मशु कोशलम्

                      " हमने पहले वाली पोस्ट मेें योग के बारे में ,योग कि आवश्यकता के बारे में जानकारी प्राप्त की,अब हम योग के अंंगो के बारे में व्यापक स्तर पर जानेंगे "

यमः :- यम योग का प्रथम चरण हैं।

योग के आठ अंंगो मेंं प्रथम अंग यम , यम हमारे जीवन के सबसे महत्वपूर्ण पहलू को संतुलित व नियंत्रित करने के लिए सर्वश्रैष्ट योगीक साधन है।

यम हमारे जीवन के सामाजिक स्तर को बेहतर बनाने का काम करता है।

समाज/सामाजिक जीवन क्या हैंं :- समाज को समझने के लिए यह बात जानना जरूरी है, कि समाज कोई जाति, वर्ग,धर्म,आदि के आधार पर तय नहीं होता हैं।
                     
                    " सम्पूर्ण विश्व के सभी प्रकार के प्राकृतिक घटकों (जीव-जन्तु , मनुष्य , पेड़-पौधे , वनस्पति , जल , अग्नि , वायु, पृथ्वी, आकाश) कि एक दूसरे के प्रति सहयोग , समर्पण का भाव , न किसी तरह का भेद भाव या न ही स्वार्थ के सबसे एक साथ जुड़कर विश्व के प्राकृतिक परिवेश को एकता के सुत्र में बांधना ।

और  सम्पूर्ण प्रकृति का विकास करना हि सही अर्थों में समाज हैं "
              
" यही वसुधैवकुटूम्बकम् कि अवधारणां हैं। "

समाज में टकराव की समस्या वर्तमान समय में अत्यधीक प्रबल रूप ले चुकि हें।

 यह टकराव वेश्विक स्तर से पारीवारिक स्तर तक व्यापकता लिए हुए हैं।

 एक-दूसरे का आपस में कोई महत्व नहीं समझता है।

 अपने जीवन , अपने विचार , अपनी क्षमता , अपनी आकांक्षा , स्वार्थ सिद्धि आदि अप्राकृतिक गुणों या यूं कहें कि केवल मनुष्य निर्मित कृत्रिम गुणों की वजह से समाज केवल शब्द बनकर रह गया है।

प्रत्यक्ष रूप से मनुष्य अपने स्वार्थो के लिए सभी प्राकृतिक घटको को अनदेखा करे लेकिन वह नहीं जानता कि वह अपने जीवन को ही अनदेखा कर रहा है।

क्योंकि मनुष्य कितना भी असामाजिक हो जाए परन्तु वह भी एक प्राकृतिक घटक हि हें ।

अतः प्रकृति से अलग वह अपने स्वतन्त्र जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकता हैं।

सभी बातें जानने के बाद भी मनुष्य अगर अज्ञानता का परीचय देता है तो भविष्य में इसके भयंकर परिणाम देखने के लिए तैयार रहना चाहिए।


              योग के प्रथम अंग यम के द्वारा मनुष्य अपने सामाजिक जीवन को सम्पूर्ण रुप से सुधार सकता है।

यम के अंग :- अहिंसा , सत्य , अस्तेय , ब्रह्मचर्य , अपरिग्रह  ।

★ सन्गति :- यम - नियम के बिना कोई व्यक्ति या अभ्यासी योग का अधिकारी नहीं हो सकता ।

यह न केवल अभ्यासियों के लिये ही वरं सब आश्रम वालोंं (ब्रह्मचर्य, गृहस्त,वानप्रस्त, सन्यास) के लिये अत्यावश्यक है ।

  इनमें यमों का सारे समाज से घनिष्ट सम्बन्ध होता है।

 इस कारण इनके पालन करने में सब मनुष्य स्वतन्त्र हैंं ।
अर्थात् यह सब मनुष्यों का परम कर्तव्य है, जैसा मनु महाराज लिखते हैं-----

"यमान् सेवेत् सततं न नियमान् केवलान् बुधः ।
यमान् पतत्यकुर्वाणो नियमान् केवलान् भजन् ।।"

अर्थात् बुद्धिमान् को चाहिये कि यमों का लगातार सेवन करें, केवल नियमों का ही नहीं; 
क्योकि केवल नियमों का सेवन करने वाला यमों का पालन न करता हैं।

 तो वह निम्न स्तर पर ही रहता हैंं ,योग के लिए तैयार नहीं होता हैं ।


Yoga : yama/योग : यमः,yama niyam
।। प्रकृति के साथ संवेदनशील रहें.।।
To be continued...... Thanks all

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