The need for truth to achieve success in yoga in hindi | truth for Yoga

            ।। योगः कर्मसु कौशलम्.।।                                                            

                       -----सत्य-----


सत्य  कि गहराइ /Depth of truth

"सत्य की गहराई को समझने के लिए यह समझना आवश्यक है की सत्य कोई छुपा हुआ अस्तित्व नहीं है ।

 बल्कि छुपे हुए अस्तित्व को स्पष्ट करने जागृत करने या खोजने में सत्य का अस्तित्व है ।"



सत्य के अस्तित्व से मेरा मतलब है कि सत्य शुन्य(0)की उत्पत्ति से अनंत के विस्तार तक और अंधकार से प्रकाश तक , जीवन से मृत्यु तक , कल्पना से विचार ,विचार (idea) से क्रिया(action) , क्रिया से अनुभव , और अनुभव ही विस्तार(क्रिया में) सभी में सत्य विद्यमान होता है ।


अर्थात सभी में सत्य विद्यमान है और सत्य से बाहर किसी का अस्तित्व नहीं है ।



सत्य स्पष्टता है, जहां जानने की अभिलाषा पूर्ण हो  जाती हैं वहां सत्य विद्यमान होता है ।

शंका सत्य का धुंधलापन है ।
सभी प्रश्नों का समाप्त होना मूल सत्य को पाना है ।

व्यवहारिक जीवन में बिना अभ्यास बिना कर्म तथा बिना अनुभव के संसार से प्राप्त हुऐ ज्ञान पर विश्वास करने से मूल सत्य से दूर हो जाते हैं ।

इसलिए हमें जो भी ज्ञान संसार से प्राप्त हुआ है उस पर अपने विवेक से प्रश्नचिन्ह लगाना चाहिए जिससे आप जिज्ञासु प्रवृत्ति को प्राप्त करेंगे ।

और यह जानने की प्रक्रिया आपको उस मूल सत्य खोजने तक ले जाएगी जिस की खोज योगी जन ,सिद्ध पुरुष व आत्म ज्ञानी किया करते हैं ।

"सत्य वह अस्तित्व है जिससे जुड़ने के बाद मनुष्य जो कुछ भी करना चाहता है या करता है वह सब सत्य व सफल होता हैं ।"

सत्य से जुड़ना आपके जीवन में स्थिरता व संतुलन लाता है और यह स्थिरता व संतुलन किसी भी मनुष्य को सफल होने के लिए अतिआवश्यक होती है ।

आधुनिक समय में सत्य के बारे में यह धारणा है कि जो आंखों से देखा गया है कानो से सुना गया है ।

या महसूस किया गया है उसे अगर प्रमाणित किया जाता है तभी वह सत्य की परिभाषा में खरा उतरता हैं।

एक सच्ची घटना जो मेरे जीवन से जुड़ी हैं।
               जब मै 2 या ढाई वर्ष का था तब की एक घटना है । मेरे माता पिता खेत में निराई-गुड़ाई कर रहे थे और मेरे हाथ में भी एक छोटि कुदाली दे रखी थी जीसे लेकर मैं खेल रहा था ।

ईधर- उधर कहिं भी कुदाली से खोदने का प्रयास कर रहा था।
तभी में अपने माता पिता से थोड़ा दूर दूसरे खेत में चला गया था और वहां खेलनें लगा ।


उस समय में इस संसार के बारे में कुछ भी नहीं जानता था।


 अतः जो भी मुझे जैसा दिखाई देता मै उसे वैसे ही देखता था।
तभी मैने एक काले सर्प को अपनी ओर आते हुऐ देखा यह मेरे लिए नया अनुभव था ।


में भी उसकि तरफ बढ़ा और उसके पास जाकर बैठ गया यह देखकर सांप ने अपना फन फैला दिया मैं उसे देख कर बहुत खुश हो रहा था ।


वह सांप मेरे सामने अपने फन को उपर नीचे हिलाने लगा मैंने भी अपनी कुदाली को उसकी नकल करते हुए ऊपर-नीचे हिलाने लगा ।


जैसे - जैसे वह फन को हिलाता वैसे-वैसे मैं भी कुदाली हिला रहा था।


उस समय मेरे मन में किसी तरह का डर या क्रोध नहीं था ।
कुछ देर बाद में मेरे पिताजी ने मेरी तरफ देखा तो वे चौंक गए थे ।


उनकी आंखो में डर भी था और क्रोध भी। उन्हैं लग रहा था कि वह सांप मुझे काट लैगा और वे मुझे अपने पास आने के लिए भी नहीं कह पा रहे थे क्योंकि उन्है डर था कि वह सांप डर के कारण मुझे काट लेगा ।

उस समय उस सर्प कि भयानकता मेरे पिता के लिए थी।मेरे लिए तो आनन्द का विषय ।


कुछ समय बाद पूरे समर्पण भाव से मेरे पिताजी ने थोड़ा पास आकर उस सर्प से हाथ जोड़कर जाने के लिए कहा । 


शायद उस सर्प ने मेरे पिता की भावना को महसूस किया और वह चला गया ।
उसके जाने के बाद मेरे पिताजी ने जल्दी से मुझे गोद में ले लिया ।

मैं इस कहानी के आधार पर यह समझाने का प्रयास कर रहा हूं कि आप किसी भी चीज के बारे में सही या गलत का निर्णय अपने पूर्व ज्ञान की आधार पर करते हैं ।

और कभी-कभी सत्यता को जाने बगैर ही प्रतिक्रियाएं करते हैं जो कही विवादों का कारण बनती है।

मेरे लिए वह सर्प एक खिलौने की तरह था और उस सर्प के लिए मैं शायद हानिकारक नहीं था ।

मेरे पिताजी को उस सांप के द्वारा अपने बचाव में किए जाने वाले प्रयास का डर था वो जानते थे कि यह सांप काट ले तो मृत्यु हो सकती है और इसी के आधार पर वह डर गए थे।


इस कहानी से यह समझ आता है कि जीवन में चाहे जो भी हो उसके सकारात्मक व नकारात्मक दोनों पहलुओं को समझना और विवेकता पूर्वक प्रतिक्रिया करना आपके जीवन को सुखमय व सन्तुलित कर सकता है।

सत्यम् शिवम् शुन्दरम्....।।।

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