Yoga mudra - How many types of Mudra yoga - yoga mudra pose - What is Mudra in yoga?

Yoga mudra-How many types of Mudra yoga -yoga mudra pose


What is Mudra in yoga?


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Gyaan Mudra Yoga


यौगिक मुद्रायें दो प्रकार की होती है।

1. हस्त यौगिक मुद्रायें

2. आसनयुक्त यौगिक मुद्रायें

जीवन को अक्षय स्रोत से जोड़तीं है "यौगिक मुद्रायें"

प्रसन्न चित्त जीवन जीने की इच्छा हर किसी की होती है।
इसके लिए योग, ध्यान, प्राणायाम, आसन, व्यायाम से लेकर न जाने कितने प्राचीन भारतीय ऋषियों द्वारा प्रदत अनुसंधान आत्मक प्रयोग ग्रंथों में भरे पड़े हैं।

 उन्हीं योग परंपरा में हैं यौगिक मुद्राएं 

शारीरिक एवं मानसिक आंतरिक ऊर्जा के असंतुलन को संतुलन में बदलना भी इसका लक्ष्य है।
यह मुद्राएं आधुनिक समाज के लिए वरदान है।

चलते फिरते इन के प्रयोग से हम आरोग्य संवर्धन एवं तनाव मुक्त सतत प्रसन्न चित्त जीवन का मार्ग खोल सकते हैं।

मुद्राएं हमारी थकी हारी जिंदगी के लिए ऊर्जा का माध्यम है।

खाते-पीते, चलते-फिरते, चिंतन करते ऑफिस अथवा घर का कार्य करते, बिस्तर पर लेट या फिर पढ़ते या ठहाके लगाते किसी भी समय इसका प्रयोग किया जा सकता है।

प्रथम प्रकार की मुद्राएं जो की हस्त मुद्राएं होती हैं ।

इनमें अंगुलियों की सहायता से प्रयोग की जाने वाली मुद्राएं की प्रक्रिया काफी छोटी है ।

लेकिन इसके प्रभाव उच्चस्तरीय हैं रोगानुसार प्रयुक्त उचित मुद्राएं प्रभाव भी दिखाती है।

 हाथ और पैर की उंगलियों से प्राण ऊर्जा की अनंत शक्ति धाराएं लगातार प्रवाहित होती रहती हैं।

जिनका वैज्ञानिक तथ्य हैं जीवन शक्ति के प्रभाव को बिखराव से रोकना और नियोजित करने का कार्य मुद्राएं करती है।

मुद्राओं को उपयोग में लेने वालों का कहना है कि काम करते समय जब थकान निराशा कमजोरी अनुभव हो अथवा थकान के कारण तनाव के दौरान तो यह मुद्राएं त्वरित सकारात्मक ऊर्जा पैदा करने में मदद पहुंचाती है।




 मैनेजमेंट, शिक्षा, इंजीनियरिंग, युद्ध क्षेत्र से लेकर किसी भी नौकरी पेशा अथवा विद्यार्थी जीवन से जुड़े व्यक्ति, महिला, पुरुष,या छात्र या कोई भी मनुष्य इसके माध्यम से निरापद जीवन शक्ति में वृद्धि कर सकते हैं।

 रात्रि पाली (Night shift) में कार्य करने वाले स्त्री पुरुषों की जीवन शक्ति बढ़ाने में सहायक साबित होने के कारण इसकी लोकप्रियता लगातार बढ़ रही है।

इसमें न तो अलग से टाइम लगाने की आवश्यकता है, न हीं कोई संसाधन कि और न हीं एकांत की खोज करनी है।

सभी को अपने कार्य को करते हुए भाव संवेदनाओं के इन विचारों के सहारे हाथ की उंगलियों की दिशा बदल देने मात्र से ही इससे शक्ति अर्जन शुरू हो जाता है।

इस ऋषि प्रणीत परंपरागत ज्ञान का उपयोग लोग हजारों वर्षों से अपने आध्यात्मिक विकास व्यक्तित्व प्रबंधन तथा स्वास्थ्य लाभ प्राप्ति के लिए करते आ रहे हैं।

★ प्रस्तुत हैं कुछ महत्वपूर्ण निरापद मुद्राएं और उनके प्रभाव।

1. ज्ञान मुद्रा


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Gyaan Mudra Yoga Mudra


अंगूठे और तर्जनी के अग्रभाग को मिलाकर यह मुद्रा बनती है।

 इस में शेष उंगलियां सीधी रहती है।
और अंगूठे और तर्जनी अंगुली के अगले भाग को मिलाया जाता है।

★  ज्ञान मुद्रा के लाभ :-


ज्ञान मुद्रा Prana Mudra Gyan Mudra DIVYA VEDIC YOGA / Yoga Mudra
ज्ञान मुद्रा Gyaan Mudra


यह स्मरण शक्ति एकाग्रता और आत्माके तेज के विकास में काफी सहायक हैं।
 इससे सकारात्मक ऊर्जा का तेजी से निर्माण होता है।
 निराशा आत्म हीनता एवं नकारात्मक विचार कम होते हैं ।
साधकों की सृजनात्मक दृष्टि प्राप्ति में कारगर भूमिका इस मुद्रा की होती है।
यह सिर दर्द, अनिद्रा, क्रोध तथा समस्त मस्तिष्क रोगों की नाशक भी है।

 अच्छे परिणाम हेतु इस मुद्रा के बाद प्राण मुद्रा करना चाहिए।

2. प्राण मुद्रा 
प्राण मुद्रा Prana Mudra Mudra DIVYA VEDIC YOGA / Yoga Mudra
प्राण मुद्रा Prana mudra


 कनिष्ठा अनामिका तथा अंगूठे तीनों के अग्रभाग को मिलाकर यह मुद्रा बनती है।

★ प्राण मुद्रा के लाभ

शरीर में सुप्त पड़े प्राण शक्ति केंद्रों का जागरण।
स्पूर्ति में वृद्धि रोग प्रतिरोधक शक्ति का विकास करना तथा आरोग्य प्रदान करना इस मुद्रा के विशेष गुण है।
 इसके द्वारा शरीर में आवश्यक विटामिनों की पूर्ति भी होती है।

उपवास काल में यह भूख प्यास में कमी लाती तथा थकान दूर करती है दीर्घ अभ्यास के द्वारा लोगों को नेत्र ज्योति वर्धन में भी सहायता करती है।

3. पृथ्वी मुद्रा


पृथ्वी मुद्रा  Earth Mudra Mudra DIVYA VEDIC YOGA / Yoga Mudra
पृथ्वी मुद्रा Earth Mudra


अनामिका और अंगूठे के अग्रभाग को मिलाकर यह मुद्रा तैयार होती है।

★ पृथ्वी मुद्रा के लाभ

अपच रोगियों के लिए यह मुद्रा रामबाण है ।

इस मुद्रा को करने से हमारी पाचन शक्ति में वृद्धि होती हैं।

 और जब पाचन शक्ति सुदृढ़ हो जाती है तब हमारी शारीरिक दुर्बलता खत्म हो जाती है।

 जिससे हमारे शरीर में बल की वृद्धि होती है ।जो लोग मोटापे के शिकार होते हैं उनके मोटापे को कम करने के लिए यह बहुत ही उपयुक्त मानी गई है।

इस मुद्रा से सात्विक गुणों का विकास बड़ी तेजी से होता है जिससे आध्यात्मिक और मानसिक विकास होता है।

4. अपान मुद्रा


अपान मुद्रा Apan Mudra /DIVYA VEDIC YOGA / Yoga Mudra
अपान मुद्रा Apan Mudra

अपान मुद्रा का आधार अनामिका मध्यमा व अंगूठा है इसमें तीनों के अग्रभाग को मिलाया जाता है।

★ अपान मुद्रा के लाभ

अपान मुद्रा के प्रयोग से शरीर के अंदर उपस्थित विजातीय तत्व बाहर निकलते हैं।

 और पेट दर्द, कब्ज, बवासीर ,वायु विकार, मधुमेह, मुत्र अवरोध, गुर्दा दोष, दातों के विकार, निम्न रक्तचाप, नाभि हटना तथा गर्भाशय दोष, पेट एवं हृदय रोगों के लिए यह मुद्रा बहुत ही लाभदायक होती है।

शरीर से पसीने का निष्कासन करना भी इसका विशेष गुण है।

 शरीर की सूक्ष्माति-सूक्ष्म स्थिति की अनुभूति से जोड़कर यह प्रयोग करता को मनो भूमि को योग की उच्च स्थिति तक पहुंचाने लायक बना देती है।

 इसके साथ यदि प्राण मुद्रा का प्रयोग भी किया जाए तो मुख नाक आंख कान के विकार भी दूर होते हैं।

5. वायु मुद्रा


वायु मुद्रा Air Mudra /DIVYA VEDIC YOGA / Yoga Mudra
वायु मुद्रा Air Mudra


 तर्जनी को अंगूठे के मूल में लगाकर अंगूठे को हल्का दबाने से यह मुद्रा बनती है।

★ वायु मुद्रा के लाभ

वायु संबंधी समस्त विकार, गैस्ट्रिक, गठिया, संधिवात, अर्थराइटिस, पक्षाघात ,कंपवात साइटिका, घुटने के दर्द जैसे रोगों को दूर करने में यह सहायक होती है।

गर्दन व रीड के दर्द,  मुंह के टेढ़ा पड़ जाने, रक्त परिभ्रमण के दोषों के होने पर इस मुद्रा का प्रयोग पीड़ित व्यक्ति के स्वस्थ होने तक ही करने की सावधानी बरतनी चाहिए।

 इसके साथ प्राण मुद्रा का प्रयोग अधिक हितकर होता है।

6. शून्य मुद्रा


शुन्य मुद्रा Zero Mudra /DIVYA VEDIC YOGA / Yoga Mudra
शुन्य मुद्रा Zero Mudra


पहले मध्यमा अंगुली के अग्रभाग को अंगूठी के मूल में लगाएं फिर उसे अंगूठे से हल्का दबाकर रखें।

★ शून्य मुद्रा के लाभ

अस्थियों की कमजोरी व हृदय रोग दूर करने , मसूड़े गले के रोग में, थायराइड रोग में यह बहुत लाभदायक मुद्रा सिद्ध होती है।

 किंतु स्वस्थ होने तक ही इसका प्रयोग करें ।

कान का बहना, कान दर्द बहरापन की अवस्था में न्यूनतम 1 घंटा नित्य दीर्घकाल तक करने से लाभ मिलता है।

◆ किंतु जन्म से बहरे और गूंगे व्यक्तियों पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।

7. आकाश मुद्रा


आकाश मुद्रा Sky Mudra /DIVYA VEDIC YOGA / Yoga Mudra
आकाश मुद्रा Sky Mudra


 मध्यमा अंगुली के अग्रभाग को अंगूठे के अग्रभाग से लगाकर यह मुद्रा बनती है।

★  आकाश मुद्रा के लाभ

कान के रोगों में शून्य मुद्रा के प्रयोग की बात बताई गई है। लेकिन यदि शून्य मुद्रा का प्रभाव कमजोर साबित हो तो आकाश मुद्रा का प्रयोग करना चाहिए।

 हड्डियों की कमजोरी तथा हृदय रोग में भी आकाश मुद्रा लाभ प्रदान करती है।

8. सहज शंख मुद्रा


सहज शंख मुद्रा Sahaja Shankha Mudra divya vedic Yoga Mudra in Yoga
सहज शंख मुद्रा


इसके लिए दोनों हाथ की उंगलियों को आपस में फंसाकर हथेलियां अंदर की ओर दबाई जाती है तथा दोनों अंगूठे को बराबर चिपका कर रखते हैं।

★ सहज शंख मुद्रा के लाभ

इस मुद्रा की आश्चर्यजनक अनुकूलता हकलाने तुतलाने वाले रोगियों पर देखने को मिली है।

 इसे लंबे समय तक करते रहने से आवाज में भी मधुरता आती है।
 पाचन क्रिया ठीक होती हैं।
 शरीर के आंतरिक और बाहरी स्वास्थ्य दोनों पर इसका सकारात्मक कारगर प्रभाव पड़ता है।

 ब्रह्मचर्य पालन के लिए यह मुद्रा विशेष कारगर सिद्ध हुई है।

विशेष लाभ के लिए इसका प्रयोग वज्रासन में करना उचित रहता है।

9. शंख मुद्रा


शंख मुद्रा Shankha Mudra divya vedic Yoga Mudra in Yoga
शंख मुद्रा


बाएं हाथ के अंगूठे को दोनों हाथ की मुट्ठी में बंद करने से यह मुद्रा बनती है।

 शंख मुद्रा के लाभ

गले में थायराइड ग्रंथि पर इसका अनुकूल प्रभाव पड़ता है।
लंबे समय तक करने से आवाज में मधुरता आती है।
वाणी संबंधी समस्त दोष दूर होते हैं।

अथवा पेट के निचले भाग के विकार दूर होते हैं, तथा पाचन क्रिया में सुधार आता है।

10. सूर्य मुद्रा

अनामिका अंगुली को अंगूठे के मूल में लगाकर उसे अंगूठे द्वारा हल्का सा दबाते हैं तो सूर्य मुद्रा निर्मित होती है।


सूर्य मुद्रा Sun mudra / DIVYA VEDIC YOGA Yoga Mudra
सूर्य मुद्रा Sun mudra


★ सूर्य मुद्रा के लाभ

यह वजन कम करके मोटापा घटाती हैं।
 तथा शरीर संतुलित करती है।
 अग्नि मंदता के शिकार लोगों की शारीरिक क्षमता में वृद्धि करके उसके पाचन क्रिया को दुरुस्त करती हैं।

 कोलेस्ट्रोल संतुलित करने, मधुमेह , यकृत दोष को दूर करने का कार्य भी यह मुद्रा बहुत ही उपयुक्त तरीके से करती है।

 तनाव में कमी लाने शारीरिक शक्ति के विकास और आलस्य दूर करने में लाभदायक साबित होती है।

 उत्तम लाभ के लिए इसे पद्मासन में बैठकर करना चाहिए।

11. अपान वायु मुद्रा

यह मुद्रा अपान मुद्रा और वायु मुद्रा का मिश्रण रूप है।


वरुण मुद्रा Mudra DIVYA VEDIC YOGA: Yoga Mudra
अपानवायु मुद्रा


 इस अपान मुद्रा में तर्जनी उंगली को अंगूठे के मूल में लगाकर उसे अंगूठे द्वारा हल्का सा दबाएं 
तथा इसके साथ अनामिका मध्यमा और अंगूठे के अग्रभाग को भी मिलाए इस प्रकार तैयार अपान वायु मुद्रा होती हैं।

★  अपान वायु मुद्रा के लाभ

हृदय व वात रोग दूर करने शारीरिक आरोग्यता का विकास करने में महत्वपूर्ण साबित होती है।
यदि किसी रोगी को दिल का दौरा पड़ता है ,तो उसे अन्य रोग उपचार के साथ यह मुद्रा कराने से लाभ मिलता है।

 सिरदर्द दबा उच्च रक्तचाप एसिडिटी गैस्टिक में भी इसका प्रयोग लाभप्रद है।

 ऊंचाई तथा सीढ़ियों पर चढ़ने से थकान अनुभव करने वाले व्यक्तियों को चढ़ाई से पांच 7 मिनट पहले इसका प्रयोग कर लेना चाहिए जिससे उन्हें परेशानी नहीं होगी।

12. वरुण मुद्रा

 कनिष्ठा उंगली को अंगूठे से मिलाने पर यह मुद्रा तैयार होती है, जिसे वरुण मुद्रा कहते हैं।


वरुण मुद्रा Mudra DIVYA VEDIC YOGA: Yoga Mudra
वरुण मुद्रा


★  वरुण मुद्रा के लाभ

 शरीर का रूखापन नष्ट करके यह चमड़ी को चमकीली वह मुलायम बनाती है।

 चरम रोग रक्त विकार मुहासे व जल की कमी वाले रोगों के लिए यह वरदान है, दस्त डिहाइड्रेशन पर प्राथमिक उपचार के रूप में इसका लाभ उठाया जा सकता है।

 शरीर में खिंचाव के साथ दर्द होने पर इसका प्रयोग तुरंत राहत देता है।

13. किडनी मुद्रा

 इस मुद्रा के लिए अनामिका कनिष्ठा के अग्रभाग को परस्पर मिलाकर उसे अंगूठे के मूल भाग पर लगाएं फिर दोनों उंगलियों पर अंगूठा रखकर उस से हल्का सा दबाने पर यह मुद्रा निर्मित होती है।
 जिसे किडनी मुद्रा कहते हैं।

★  किडनी मुद्रा के लाभ

इससे किडनी संबंधी प्रत्येक बीमारी में सहायता मिलती है।

 तथा जलोदर नाशक मुद्रा के भी सभी लाभ इससे प्राप्त हो सकते हैं ,यह बहुत ही उपयुक्त मुद्रा है।

14. लिंग मुद्रा

लिंग मुद्रा को करने के लिए सर्वप्रथम दोनों हाथों की सभी उंगलियों को आपस में फंसाकर बाएं हाथ के अंगूठा खड़ा करें और दाहिने हाथ के अंगूठे से बाएं हाथ के अंगूठे के मुल को लपेट कर रखें।

★  लिंग मुद्रा के लाभ


लिंग मुद्रा Linga Mudra divya vedic Yoga Mudra in Yoga
लिंग मुद्रा 


यह मुद्रा शरीर में गर्मी बढ़ाती है।

 तथा सर्दी जुकाम दमा खांसी साइनस रोगों के ठीक करती हैं ।

तथा लकवा, निम्न रक्तचाप में भी यह काफी सहायक सिद्ध होती हैं।

इसलिए इस मुद्रा को सावधानीपूर्वक करना चाहिए तथा महीने में या सप्ताह में एक बार या दो बार ही करना चाहिए।

15. ध्यान मुद्रा

पद्मासन में बैठे और कमर गर्दन और सिर को सीधा रखें।


Yoga Mudra Gyan Mudra divya vedic Yoga Mudra in Yoga
ध्यान मुद्रा । Dhyan Mudra । Meditation Mudra

ध्यान मुद्रा । Dhyan Mudra । Meditation Mudra । Buddha dhyan Mudra ! Bauddh Meditation
गौतम बुद्ध ध्यान मुद्रा में


 तथा आंखें बंद करें और बाएं हाथ की हथेली पर दाएं हाथ की हथेली रखकर उसे गोद में रखें और दोनों हाथों के अंगूठे को आपस में मिलाएं इस प्रकार यह ध्यान मुद्रा बनती है।

★  ध्यान मुद्रा के लाभ


ध्यान मुद्रा।Dhyan Mudra Yoga Mudra divya vedic Yoga Mudra in Yoga
ध्यान मुद्रा।Dhyan Mudra


इससे औज एवं एकाग्रता में वृद्धि होती हैं।

 ध्यान की उच्चतर स्थिति तक पहुंचने में यह मुद्रा सहायक सिद्ध होती है ।

ध्यान मुद्रा के साथ ज्ञान मुद्रा भी की जा सकती हैं।

 दोनों एक साथ करने पर दोनों के सम्मिलित लाभ प्राप्त किए जा सकते हैं।

16. आदित्य मुद्रा


आदित्य मुद्रा Mudra DIVYA VEDIC YOGA: Yoga Mudra
आदित्य मुद्रा


इसमें अंगुष्ठ को अनामिका के जड़ में लगाकर उसे हल्के से दबाया जाता है शेष उंगलियों को सीधा रखा जाता है।
 यह आदित्य मुद्रा होती हैं।

★  आदित्य मुद्रा के लाभ

कार्य के दौरान ऊर्जा की कमी से अक्सर उबासी तथा जम्हाई आने लगती है ऐसे अवसरों पर मानसिक और शारीरिक ताजगी और फुर्ती लाने के लिए यह मुद्रा लाभदायक सिद्ध होती हैं अकस्मात सर्दी लगने से छींक आने पर इस मुद्रा द्वारा लाभ प्राप्त करना चाहिए।

 ★★★ ★★★★★★★★★★★★★★★

वस्तुतः यह मुद्राएं ऋषि प्रणीत ऐसी धरोहरें हैं ।

जो न केवल व्यक्तित्व का कायाकल्प करती हैं, अपितु इतनी निरापद है कि रोजमर्रा के तनाव को दूर करने, नकारात्मक ऊर्जा को समाप्त करके सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ाने एवं मन मस्तिष्क को शांत करने में हर किसी के लिए वरदान जैसी हैं।

 दूसरे शब्दों में योग प्राणायाम के विराट आयामों से जुड़ने की दिशा में एक छोटी यौगिक पहल भी कह सकते हैं।


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