Top 10 Kundalini awakening techniques beginners in hindi

Kundalini awakening

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{Nadi Yoga} {svar shkti yoga}


कुंडलिनी शक्ति को जागृत करने के लिए बहुत ही प्रक्रिया होती हैं।


 लेकिन मैं इस पोस्ट में Top और सबसे best और महत्वपूर्ण Yoga techniques के बारे में बताऊंगा ।


जिनसे कुंडलिनी शक्ति {Kundalini} को जागृत{Awakening} करने की तरफ आगे बढ़ सकते हैं।


1.] Yama-Niyama 


{यम - नियम} का पालन [Obeying {Yama - Rules} ]



★ Yama-Niyama योग के प्रथम दो अंग है।


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Yama-Niyama


★ Yama-Niyama हमारे शारीरिक ,मानसिक व्यवहार को संतुलित करने का कार्य करते हैं।


★ यम ( Yama )


अहिंसा, सत्य, अस्थेय (चोरी न करना ),
ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह ( अनावश्यक धन-सम्पत्ति संग्रहित नहिं करना); यह यम के प्रकार है।


★ नियम ( Rules )


शौच Internal and external cleansing ( आंतरिक और बाहरी शुद्धता या स्वच्छता ), 

संतौस या सब्र 

Should not be greedy (अधिक लालच न करना, जितना हो उसी से संतुष्ट और आनन्द में रहना), 



◆ तप 


It is austerity to bear all kinds of problems and dualities in order to take any good work to its last step.( किसी उत्तम कार्य को उसके अंतिम चरण तक ले जाने के लिए हर प्रकार की समस्याऔं और द्वन्दों को सहन करना तप हैं।), 



◆ स्वाध्याय 


(  To study the spiritual Vedas Upanishad and to self-inspection are Swadhyayas.), 

( आध्यात्मिक वेद उपनिषद का अध्ययन करना और आत्म निरिक्षण करना स्वाध्याय हैं।), 


◆ ईश्वर प्राणिधान 


(To dedicate ourselves to God and actions that are done by Him and to be free from pride is God's inspiration.),

 ( अपने आप को और अपने द्वारा किए गए कार्यों को ईश्वर को समर्पित करना और अभिमान से मुक्त रहना ईश्वर प्रणिधान है।), 

कुण्डलीनी जागरण के लिए यम-नियम का पालन करना आवश्यक होता है।


It is necessary to follow Yama-Rule for awakening Kundalini.


2.] हठयोग की छः क्रियाओं द्वारा शरीर-शोधन।


Body cleansing by the six actions of Hatha Yoga. 


basti kriya /vasti kriya ,neti kriya , nauli kriya , dhauti kriya  , trataka kriya , kapal bhati pranayam

धौति, वस्ति, नेति, नौली, त्राटक और कपालभाति


1. धौति 


Dhauti kriya , Top 10 Kundalini awakening techniques beginners in hindi - kundalini yoga techniques for Kundalini awakening-Kundalini Yoga- Kundalini awakening Yoga -Kundalini jagaran ke liye Yoga Asana pranayama- How to do Yoga for Kundalini awakening- Kundalini Yoga techniques benefits
Dhauti kriya


यह तीन प्रकार कि होती है।
1. वारिधौति, 2. ब्रह्मदातौन, 3. वासधौति

1. वारिधौति - खाली पेट लवण मिश्रित गुनगुना पानी पीकर छाती हिलाकर वमन की तरह निकाल दिया जाता है। 


इस क्रिया को गज करणी भी कहते हैं; क्योंकि जैसे हाथी सूंड से जल खींच कर फेंकता है उसी प्रकार इसमें जल को पी कर निकाला जाता है।

आरंभ में पानी का निकालना कठिन होता है।

इसके लिए मुँँह में तालु से ऊपर छोटी जीव्हा को सीधे हाथ की अंगुलियों से दबाने से पानी निकलने लगता है।




2. ब्रह्मदातौन - सूत की बनी हुई बारीक रस्सी  के टुकड़े को अथवा रबड़ की ट्यूब को लवण मिश्रित गुनगुने पानी को खाली पेट पीने के पश्चात बिना दांत लगाए गले से दूध के घुट के सदृश निगला जाता है,  फिर छाती हिलाकर उसको निकाल कर सारे पानी को उल्टी करने केेेे समान बाहर निकाल दें ।




3. वास - धौति ( वस्त्र - धौति )

 धोती लगभग चार अंगुल चौड़ी लगभग 15 हाथ लंबी बारीक मलमल जैसे कपड़े की होती है।
खाली पेट पानी अथवा आरंभ में दूध में भीगी हुई धोती के एक छोर को अंगुली से पकड़ कर अपने गले में ले जाकर बिना दांत लगाए  धीरे-धीरे दूध के घूँट के समान निगला जाता है।

शुरुआत में निगलना कठिन होता है। और उल्टी जैसी स्थिति होती है। इसलिए एक घूंट गुनगुने पानी के साथ निगली जाती हैं।


 प्रथम दिन एक साथ ही नहीं निगली जा सकती हैं। धीरे-धीरे अभ्यास बढ़ाया जाता है।


सब धोती निगलने के पश्चात कुछ अंश मुँह के बाहर रखना पड़ता है। इसके बाद नौली को चालन करके धोती तथा सब पिए हुए पानी को को वमन के सदृश अर्थात उल्टी के समान बाहर निकाल दिया जाता है।


इन क्रियाओं से कफ और पित्त रोग दूर होकर शरीर शुद्ध और हल्का हो जाता है ; और मन सुगमता से एकाग्र होने लगता है।


इस प्रिया को अत्यंत सावधानी के साथ करना चाहिए क्योंकि इस क्रिया में शारीरिक प्रक्रिया को सम्मिलित किया जाता है।

 धोती को तह करके पानी में भिगोना चाहिए।

जितना भाग अंदर ले जाना हो, उसकी चार तह करते जाएं।


इस बात का ध्यान रहे कि अंदर जाकर धोती उलझने न पावे क्योंकि उसके निकालने में दिक्कत होगी।


 यदि असावधानी से कभी ऐसी स्थिति हो जाए तो तुरंत धोती को वापस खाना शुरू कर दे दो 3 इंच खा कर पुनः निगलना प्रारंभ करें, 


इससे अंदर उलझी हुई धोती सुलझ जाएगी। 

 यदि इस प्रकार भी ना निकले तो कोई वमन करने वाली अर्थात उल्टी जैसी स्थिति बना देने वाली औषधि या चूर्ण को पानी में डालकर पी लें।
वह चूर्ण है मानफल चूर्ण


धोती क्रिया सीखने के आरंभ में पूरी की पूरी धोती ना लेंं केवल चार पांच हाथ का टुकड़ा लेंं।


 पानी पीकर न करें तह की हुई और भीगी हुई धोती के किनारे पर  कुछ  चीनी लगाकर सीधे हाथ वाले अंगूठे के पास की दो अंगुलियों से  उसको गले के अंदर  ले जाएं ।


 फिर धीरे धीरे दूध के घूँट के समान निगलने का प्रयत्न करें।

मुंह कुछ नीचे की ओर रखें जिससे उलटी न आवे।
जब अंदर ले जाने में रुकावट मालूम हो तब एक दो घूंट  गुनगुना पानी पीते जाएं अंत में एक गिलास अथवा न्यून अधिक लवण मिश्रित गुनगुना पानी पीकर धोती को बाहर निकाले।

3.] वस्ति - जल वस्ति और पवन वस्ति

इनको क्षालन कर्म और स्थल वस्ति या शुष्क वस्ति भी कहते हैं।

★ जल वस्ति - किसी बड़े पात्र में नाभि तक जल भरकर या नदी तालाब आदि में जिनका जल शुद्ध हो पवित्र हो अथवा साफ हो उसमें उत्कटासन लगाकर बैठ जाएं ।


और गुदा मार्ग का संकुचन और प्रसारण करें अर्थात उसी जेल के अंदर उत्कटासन से बैठा हुआ गूदा को इस प्रकार सिकोड़ें और फैलावैं  

जैसे अश्व आदि मल त्याग के पश्चात किया करते हैं, इससे प्रमेह और कोष्ठ की क्रूरता आदि रोग दूर हो जाते हैं।

★ पवन- वस्ति - भूमि पर पश्चिम उत्तान होकर लेट जाएं।


 फिर अश्विनी मुद्रा द्वारा धीरे धीरे वस्ती का चालन करें।


 अथवा गुदा मार्ग का संकुचन और प्रसारण करें इसके अभ्यास से जठराग्नि प्रदीप्त होकर उदरगत आमवात आदि रोगों को नष्ट कर देती हैं।

4.] नेति 


जल नेति - जल नीति में दोनों नासिका छिद्रों से जल को अंदर खींचा जाता है और मुंह से बाहर निकाला जाता है।


Sutra neti, Top 10 Kundalini awakening techniques beginners in hindi - kundalini yoga techniques for Kundalini awakening-Kundalini Yoga- Kundalini awakening Yoga -Kundalini jagaran ke liye Yoga Asana pranayama- How to do Yoga for Kundalini awakening- Kundalini Yoga techniques benefits

Sutra neti

जल नेति jal neti Top 10 Kundalini awakening techniques beginners in hindi - kundalini yoga techniques for Kundalini awakening-Kundalini Yoga- Kundalini awakening Yoga -Kundalini jagaran ke liye Yoga Asana pranayama- How to do Yoga for Kundalini awakening- Kundalini Yoga techniques benefits
Water neti जल नेति


या फिर एक नासिका से अंदर खींचा जाता है और दूसरी नासिका से जल को बाहर निकाला जाता है।


यह जलनेति एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा हम अपने मस्तिष्क को और नासिका रन्ध्रो को बिल्कुल स्वस्थ कर सकते हैं।


कपालनेति - मुँह में पानी भर कर नासिका छिद्रों से निकालनां।


5.] नौली क्रिया योग 


यह तीन चरणों में सम्पन्न होती है।


★ पहला है- उड्डियान क्रिया - दोनों हाथों को घुटनों पर रखकर तथा कुछ झुक कर खड़े हो जाओ स्वास को नासिका द्वारा जोर से बाहर निकाल कर पेट को अंदर ले जाओ यहां तक कि अभ्यास करते करते पेट बिल्कुल पीठ के साथ जाकर लग जाए।


उड्डियान क्रिया
उड्डियान क्रिया



★ दूसरा + तीसरा चरण हैं -  नौली क्रिया प्रथम - उड्डियान हो जाने पर उसी अवस्था में ही पेट के मध्य के दोनों नलों को बाहर निकालने का प्रयत्न करो ।


नौली क्रिया nauli kriya Top 10 Kundalini awakening techniques beginners in hindi - kundalini yoga techniques for Kundalini awakening-Kundalini Yoga- Kundalini awakening Yoga -Kundalini jagaran ke liye Yoga Asana pranayama- How to do Yoga for Kundalini awakening- Kundalini Yoga techniques benefits
नौली क्रिया


जब दोनों नल निकालते निकालते बारीक हो जाएं, तो एक को अंदर दबाकर बारी बारी से बाहर निकालने का प्रयत्न करो ।


जब एक एक अच्छी तरह निकलने लगे, 


३. तो फिर घुमाने का प्रयत्न करो यह क्रिया पेट के लिए जितनी लाभप्रद है उतनी ही कठिन भी है , अतः इसे किसी अनुभवी गुरु से ही सीखना चाहिए।

6.] त्राटक - त्राटक तीन प्रकार से किया जाता हैं।


1. आन्तरत्राटक ( Internal Tratak )

2. मध्य त्राटक ( Middle Tratak )


3. बाह्य त्राटक ( External Tratak )


त्राटक के चमत्कार (click here)


6.] Good thinking for Kundalini Awakening Yoga


"Every bit of hatred that goes out of the heart of man comes back to him in full force , nothing can stop It and every impulse of life comes back to him."


7.] Yoga Asana / Yoga Poses


1. Swastikasana/स्वस्तिकासन


2. Sidhh asana/ सिद्धासन


3. Samasana/ समासन


4. Padmasana/ पद्मासन 


5. Badhha Padmasana/ बद्धा पद्मासन


6. Veer asana / वीरासन 


7. Gomukh asana / गौमुखासन


8. Vajra asana / वज्रासन


9. Easy asana/ सरलासन


आसन करते समय गर्दन, सिर और कमर को सीधे एक रेखा में रखना चाहिए और मूलबन्ध के साथ अर्थात् गुदा और उपस्थ को अंदर की ओर खींचकर बैठना चाहिये।



8.] Bond yoga बन्ध क्या है। और बन्ध कैसे लगाया जा सकता है। और उसके क्या लाभ होता है।

1. मूल बन्ध / Basic bond yoga /mula bandha

2. उड्डियान-बन्ध /Uddiyan bandha/


3. जालन्धर-बन्ध/ Jalandhar bandha


4. महाबन्ध / Maha bandha


5. महावेध / Maha vedna




9.] Mudra Yoga/Mudra Poses


Two types of Mudra Yoga


1. Hand Mudra / हस्त मुद्रायें


हाथ की अंगुलीयों से योग मुद्रा कि जाती हैं।


हस्तमुद्रा के बारे में जानने के लिए यहां क्लिक करें।


2. Body Asana Mudra/ शारीरिक आसन युक्त मुद्रा


● खेचरी मुद्रा


● महामुद्रा


● अश्विनी मुद्रा


● शक्तिचालिनी मुद्रा


● योनिमुद्रा


● योगमुद्रा


● शाम्भवी महा मुद्रा


● तडा़गी मुद्रा


● विपरीतकरणी मुद्रा


● वज्रोली मुद्रा


● उन्मनी मुद्रा



10.] Kundalini Awakening Meditation Yoga / कुण्डलिनी जागरण के लिए ध्यान योग

What is Meditation click here

Kundalini Yoga and Meditation


How many types of Meditation(click here)


★  Extra technique

11.] Pranayam Yoga

प्राणायाम योग

1. Kapal bhati pranayam कपालभाति प्राणायाम


2. Anulom vilom pranayam अनुलोम विलोम प्राणायाम


3. Bhastrika pranayam भस्त्रिका प्राणायाम


4. Bhramari pranayam भ्रामरी प्राणायाम


5. Bahya pranayam बाह्य प्राणायाम


6. Nadi Shodhan pranayam नाड़ी शोधन प्राणायाम


४. स्वर शक्ति / svar Shakti :- 

स्वर तीन प्रकार के होते हैं।


 1. चन्द्र स्वर 


 2. सूर्य स्वर


 3. सुषुम्ना स्वर


Nadi shodhan, Kundalini Awakening Yoga, Kundalini Chakra Awakening Meditation Yoga
Nadiyan



 हमारे शरीर में चंद्र स्वर सूर्य स्वर और सुषुम्ना स्वर तीन प्रकार के स्वर होते हैं अर्थात स्वर का अर्थ है हमारे शरीर में निरंतर बहने वाले प्राण और प्राणों को प्रवाहित करने वाली नाड़िया


kundalini awakening techniques beginners in hindi 


1. चन्द्र स्वर 


 हमारे शरीर में तीन प्रकार की नाड़ीयाँ हमारे प्राणों को प्रवाहित करने  का कार्य करती हैं वह तीन नाड़ीयाँ  इड़ा नाड़ी, पिंगला नाड़ी और सुषुम्ना नाड़ी है।


 साधारणतया प्राण शक्ति निरंतर इडा नाड़ी और पिंगला नाड़ी से श्वास प्रस्वास के रूप मेें प्रवाहित होती रहती है ।


इडा नाडी को चंद्र नाड़ी कहते हैं और पिंगला नाड़ी को सूर्य नाड़ी कहते हैं।


ईड़ा नाड़ी तम प्रधान है। 


अर्थात् तम का अर्थ है,  अंधकार, आलस्य, निष्क्रियता, शीतलता आदि इसके गुण हैं ;

और पिंगला नाड़ी रज प्रधान है ; अर्थात रज का अर्थ है, प्रकाश, कर्मण्यता, सक्रियता, उष्णता, उत्तेजना या अग्नि तत्व के गुण आदि इस नाड़ी के गुण हैं।

 इसे सही से समझने के लिए हम इस प्रकार देखते हैं, की हमारी जो नासिका है, उसमें दो नथुने हैं।


 अर्थात सांस लेने के लिए दो छिद्र हैं ।

दायाँँ नथुना और बायाँ नथुना अतः स्वास कभी बाएं नथुने सेेेे अधिक  वेग से चलती है, तो यह समझना चाहिए  की  चंद्र स्वर चल रहा है ।

 जब चंद्र स्वर चल रहा हो तब निम्न कार्य करने चाहिए ।

जिनमें है, जो कार्य स्थिर रहकर करने योग्य हैं ।वह कार्य करें तथा जो भी शुभ कार्य हैं,
 वह चंद्र स्वर चलते समय करें। 
अर्थात जैसे तीर्थ यात्रा, मकान, तालाब, कुआँँ बनवाने का मुहूर्त हो, नए मकान में प्रवेश हो या औषधि आदि का सेवन करना हो, दूध जल पीना और मूत्र त्याग आदि सभी प्रकार के कार्य चंद्र स्वर चल रहा हो उस समय करने चाहिए।

चंद्र स्वर से संबंधित तत्व हैं, जल तत्व और पृथ्वी तत्व


 चंद्र स्वर से संबंधित दिन के नाम बुधवार बृहस्पतिवार शुक्रवार और सोमवार यह दिन चंद्र स्वर से संबंधित हैं।


 इसलिए इन दिनों में चंद्र स्वर से संबंधित कार्यों को करना शुभ रहता है।


चंद्र स्वर से संबंधित दिशाऐं हैं।

 पश्चिम दिशा और दक्षिण दिशा

ईश्वर को अर्थात चंद्र स्वर को साधने के लिए उपयुक्त समय हैं।


 सूर्योदय से दिन में चलना चाहिए ।


भोजन, सोने, मल त्याग, स्नान में सूर्य स्वर कर लेना चाहिए ।


2. सूर्य स्वर


 जब हमारा दांया नथुना चल रहा हो अर्थात हमारे नासिका के दाएं छिद्र से श्वास और प्रश्वास बिना किसी रूकावट के तेज गति से चल रहा हो तो यह समझना चाहिए कि हमारा सूर्य स्वर सक्रिय हैं अर्थात चल रहा है।


सूर्य स्वर चलने के समय अधिक कठिन कार्य करने चाहिए ।

जिनमें अधिक परिश्रम अपेक्षित हो तथा कठिन यात्रा, मेहनत के कार्य, व्यायाम तथा भोजन,शौच, स्नान और शयन आदि करने चाहिए।

 तथा जब सूर्य स्वर सक्रिय हो उस समय विद्या अध्ययन और अध्यापन, दान, संतान उत्पत्ति, मंत्र जाप, ध्यान करना और सोना आदि कार्य करने चाहिए ।


3. सुषुम्ना स्वर


 जब हमारे नासिका के दोनों नथुने सूक्ष्म समय अंतराल  से बारी बारी चल रहे हो तो सुषुम्ना स्वर चल रहा होता है।


योग में सुषुम्ना स्वर की बहुत ही महिमा है ।क्योंकि योग के सभी प्रकार की क्रियाओं में सिद्धि प्राप्त करने के लिए सुषुम्ना एकमात्र ऐसी ग्रंथि है या ऐसी नाड़ी है।


जिससे बहुत ही कम समय में और बहुत ही संतुलित तरीके से उन सभी सिद्धियों को प्राप्त किया जा सकता है। और अपने जीवन को नयी संभावनाओं से जोड़ा जा सकता है।


● अपने जीवन के अस्तित्व को सही तरीके से समझने के लिए और उसे संतुलित करने के लिए और अपने जीवन की असीम संभावनाओं को जानने के लिए सुषुम्ना नाड़ी और सुषुम्ना स्वर बहुत ही उपयोगी होता है ।


● सुषुम्ना स्वर की एक बहुत महत्वपूर्ण बात यह है कि जब हमरा सुषुम्ना स्वर चल रहा हो उस समय प्राणायाम करते हैं या ध्यान लगाते हैं या भजन कीर्तन करते हैं या कोई भी आध्यात्मिक क्रियाएं करते हैं, तो हमारी कुंडलीनी शक्ति शीघ्र ही उत्तेजित हो जाती हैं। 


और सुषुम्ना नाड़ी में प्रवेश कर जाती हैं सुषुम्ना नाड़ी के अंदर ही हमारे शरीर में मौजूद सात चक्र उपस्थित होते हैं।


● जब कुंडलिनी शक्ति सुषुम्ना नाड़ी में प्रवेश करती है, तो वह ऊपर की ओर सुषुम्ना नाड़ी में गति करने लगती है।


●  सर्वप्रथम वह सबसे पहले वाले चक्र में जिसका नाम है, मूलाधार चक्र उस चक्र को जागृत करती है।


● जब वह चक्र जागृत होता है तो बहुत ही ऊर्जा हमारे शरीर में प्रवाहित होने लगती है ।


जिसे नियंत्रित करने के लिए बहुत ही स्थाई ध्यान की आवश्यकता होती है । और धीरे-धीरे यह कुंडलिनी शक्ति सुषुम्ना नाड़ी में ऊपर प्रवेश करती है और दूसरे चक्र को जागृत करती है ।


● दूसरा चक्र है, स्वाधिष्ठान चक्र स्वाधिष्ठान चक्र को जागृत करते ही हमारे शरीर में फिर से एक नई ऊर्जा प्रवाहित होती हैं, इन सभी ऊर्जाओं को संतुलित करना बहुत ही आवश्यक होता है। 


● और इन ऊर्जाओंं के संतुलित नहीं होने पर हमारा पूरा शरीर असंतुलित हो सकता है।


 इसलिए कुंडलिनी को जागृत करने से पहले इन सभी बातों का अर्थात प्राण,और प्राण शक्ति, स्वर शक्ति, नाड़ी शक्ति आदि सभी प्रकार की क्रियाओं के बारे में जानना आवश्यक होता है ।


● और जब इन सभी को जान लेते हैं तो इन पर सिद्धि प्राप्त करना भी आवश्यक होता है।


 जब यह क्रियाएं पूर्ण हो जाए तभी कुंडलिनी शक्ति को जागृत करना चाहिए तभी हमें पूर्ण सफलता मिल सकती है।


◆ हमारे शरीर में अनगिनित शक्ति केंद्र हैं। लेकिन इन सभी शक्ति केंद्रों में महत्वपूर्ण केवल सात केंद्र होते हैं ।

इन्हीं सात केंद्रों से हमारे शरीर की सभी क्रियाएं तथा सभी शक्तियां नियंत्रित होती हैं ।

◆ अतः इन सात चक्रों पर नियंत्रण प्राप्त करना हमें हमारे शरीर की सभी क्रियाओं पर नियंत्रण प्राप्त करने के काबिल बना देता है।


◆ और जब हम अपने शरीर की सभी क्रियाओं पर नियंत्रण प्राप्त कर लेते हैं , तो इस ब्रम्हांड में मौजूद ब्रह्मांडीय शक्तियों पर भी नियंत्रण प्राप्त हो जाता है।


★ अब हम बात करते हैं, इन सात चक्रों के बारे में कि यह सात चक्र क्या होते हैं।


 और यह किस प्रकार जागृत होते हैं।


 यह चक्र कहां कहां स्थित होते हैं।


Kundalini Awakening Meditation Yoga and technique in english

★ हमारे शरीर के सात चक्र के नाम है।

1. पहला है मूलाधार चक्र 

2. दूसरा है स्वाधिष्ठान चक्र 


3. तीसरा है मणिपुर चक्र 


4. चौथा है हृदय चक्र या अनाहत 


5. चक्र पांचवां है विशुद्धि चक्र 


6. छः वाँ है आज्ञा चक्र 


7. वां है ब्रह्म रंध्र या सहस्रार चक्र इस प्रकार यह सात चक्र हमारे शरीर में होते हैं।


★ अब हम बात करते हैं कि यह चक्र कहां कहां स्थित होते हैं। हमारे शरीर में ।।


★★★ ★★★ ★ तो दोस्तों यह सातो चक्र हमारे सुषुम्ना नाड़ी में स्थित होते हैं ¡


◆ और सुषुम्ना नाड़ी हमारी रीढ़ की हड्डी में स्थित होती है । सुषुम्ना नाड़ी के साथ इड़ा और पिंगला नाड़ी भी मौजूद होती है।


★  सामान्य अवस्था में हमारी प्राणशक्ति जिससे हम जीवित रहते हैं वह इड़ा और पिंगला नाड़ी में ही प्रवाहित होती रहती है ।


★ लेकिन योग के द्वारा जब हम अपने प्राणों पर  नियंत्रण प्राप्त कर लेते हैं।


 तो हम उन प्राणों को संयमित करके सुषुम्ना नाड़ी में प्रवेश कर पाते हैं। 


★  जब वह प्राण सुषुम्ना नाड़ी में प्रवेश करते हैं।

तो प्रथम वह अधोगमित होते हैं अधोगमित का अर्थ है, नीचे की ओर गति करना।

★  जब प्राण नीचे की ओर गति करते हैं ,तो नीचे की सभी क्रियाओं को शुद्ध करते हैं ।


और कुंडलिनी शक्ति तक पहुंचते हैं, हमारी कुंडलिनी शक्ति पर अनेक प्रकार के विषय वासनाओं की बुरी क्रियाओं के आवरण चढ़े हुए होते हैं ।


उन आवरण को हटाने के लिए प्राणशक्ति कार्य करती है ।


हमारी कुंडलिनी शक्ति हमारी रीड की हड्डी के अंतिम छोर पर सर्प के समान 3 बल खाए या 3:30 बल खाए स्थित होती है।


 जब प्राण शक्ति वहां पर पहुंचती हैं तो उस कुंडलिनी शक्ति को ऊर्जा मिलती है।


 और वह ऊर्जावान हो जाती है जिससे वह उर्ध्वगमित होने लग जाती है।


★  रीड की हड्डी के अंतिम छोर से दो अंगुल ऊपर मूलाधार चक्र स्थित होता है।


★  मूलाधार चक्र और हमारे जननांग के मध्य में स्वाधिष्ठान चक्र स्थित होता है ।


★ और अगला है मणिपुर चक्र

 मणिपुर चक्र हमारी नाभि में स्थित होता है।

लेकिन नाभि में ही स्थित नहीं होता बल्कि नाभि की सीध में रीड की हड्डी में सुषुम्ना नाड़ी में स्थित होता है।


★ अगला है हृदय चक्र या अनाहत चक्र यह चक्र इसके नाम से ही पता चलताा है कि यह हृदय में स्थित होता है।


★ अगला चक्र है विशुद्धि चक्र यह चक्र हमारे गले में स्थित होता है ।

★  और आगे जो चक्र आता है, वह है आज्ञा चक्र ।

आज्ञा चक्र हमारे भ्रूमध्य में स्थित होता है ।


दोनों भौहों के बीच और सिर में तालू की सीध में जहां पर यह दोनों रेखाएं मिलती है।

 वहां पर यह चक्र स्थित होता है।

 इसी को ही थर्ड आई कहते हैं, तीसरी आंख ,यही से दिव्य दृष्टि तथा अनेक प्रकार के चमत्कारी कार्य संपन्न होते हैं।


★ यह चक्र बहुत ही महत्वपूर्ण है ।


अगर केवल योगी किसी अन्य चक्र पर ध्यान ना लगाए और लगातार आज्ञा चक्र पर ही अपने ध्यान को केंद्रित करें तो उसकी कुंडलिनी जागृत होते हुए सभी चक्रों को जागृत करते हुए आज्ञा चक्र तक पहुंच जाती है।


★  आज्ञा चक्र जागृत होने का सबसे महत्वपूर्ण बात यह है, कि हमें इस संसार के व्यू का ज्ञान हो जाता है ।


अर्थात इस संसार, इस ब्रह्मांड में ऐसी कोई भी वस्तु नहीं है, कोई भी ऐसी प्रक्रिया नहीं है, जिसके बारे में हम ना जान पाए; क्योंकि आज्ञा चक्र महा विशाल है।


 इसके अंदर संपूर्ण ब्रह्मांड का ज्ञान अवशोषित करने की शक्ति होती है।


 इसलिए इस चक्र को जागृत करके इसे नियंत्रित करने पर योगी जन संपूर्ण ब्रह्मांड के ज्ञान को प्राप्त कर सकते हैं ।


लेकिन यहां तक पहुंचना बहुत ही कठिन होता है और कुछ हद तक असंभव होता है।


 यहां तक वही योगी या व्यक्ति पहुंच सकता है ।

जो अपने मन को जीत चुका है, जिसने अपनी इंद्रियों पर विजय प्राप्त कर ली है, और जिसे इस संसार की कोई भी चीज या कोई भी वस्तु प्रभावित नहीं कर सकती है।

 सुख-दुख अपमान या किसी भी प्रकार का व्यवहारिक कार्य उनके जीवन को प्रभावित नहीं कर सकता है। 


और अपने आप को पूर्ण रूप से संयमित रखते हुए और धैर्यवान रखते हुए जब हम योग के हिस्सों में, यज्ञ में अपने आप को समर्पित कर देते हैं।

★ और इस चिंता से मुक्त रहते हैं , कि कब हमें इसमें सफलता मिलेगी बल्कि इस मार्ग को आनंद के साथ तय करते रहते हैं।


 तभी हमें उन रहस्यों के बारे में जानकारी मिल सकती है, जो हमेशा से इस ब्रह्मांड के और इस पृथ्वी के मनुष्यों के लिए रहस्य बने हुए हैं, पहेली बने हुए है।


 आगे जो चक्र है, वह है, सहस्रार चक्र या ब्रह्म रंध्र या इसे शून्य 0 चक्र भी कह सकते हैं।

 क्योंकि यह चक्र इतना विशाल हैं कि ब्रह्मांड पूर्ण रूप से इसमें समा सकता है।

 ब्रह्मांड का संपूर्ण ज्ञान ब्रह्मांड की सभी क्रियाएं ग्रह उपग्रह सूर्य आकाशगंगाए तथा ऐसी सभी विचित्र घटनाएं जो इस ब्रह्मांड में हो रही है ।


उन सबको विधाता ने इस मस्तिष्क के इस पुण्य चक्र में स्थीर कर दिया है।

 इसीलिए कहते हैं कि यह संपूर्ण ब्रह्मांड हमारे शरीर में मौजूद है ।


भगवान श्री कृष्ण ने गीता में बताया है ।


जब श्री कृष्ण मिट्टी खा रहे थे बाल्यावस्था में, तो मां यशोदा ने उनको मुख खोलने के लिए कहा जब मां यशोदा ने उनके मुख में देखा तो उन्हें उनके मुख में मिट्टी की जगह संपूर्ण ब्रह्मांड दिखाई दिया ।


यह देखकर माँँ यशोदा बहुत ही अचंभित हुई लेकिन यह सब भगवान श्री कृष्ण की लीला ही थी।


उन्होंने इस प्रकार की लीला रच कर संसार को यह ज्ञान प्रदान किया अगर हम अपने आप को बिल्कुल स्थिर कर लेते हैं ।

मन शरीर और आत्मा को नियंत्रित कर लेते हैं ।


पूर्ण रूप से अपने शारीरिक और मानसिक व्यवहारिक, आध्यात्मिक जीवन को समझ लेते हैं। 


★ और किसी भी प्रकार से अपने आप को अव्यवस्थित महसूस नहीं करते हैं ।


बल्कि पूर्ण रूप से संतुलित हो जाते हैं, तो यह ब्रह्मांड हमारे अंदर और हम इस ब्रह्मांड के अंदर समाहित रहते हैं।


 जो इस ब्रह्मांड में घटित होता है, वह हमारे शरीर में घटित होता है और जो हमारे शरीर में घटित होता है वह इस ब्रह्मांड में घटित होता है।


 यह भगवान श्री कृष्ण का महान ज्ञान था जिसे हम आज भी अनुसरण करते हैं।


 और मुझे इस बात के लिए गर्व है, कि हमारे भारत देश में भगवान श्री कृष्ण ने इस महान ज्ञान को प्रदान किया और एक नई संभावनाओं को जन्म दिया।


★★★ महर्षि पतंजलि ने योग सूत्र की रचना की और उन्होंने इस महान ग्रंथ में आठ प्रकार के योग अंगो का निर्माण किया जिनके द्वारा हम अपने आप को बड़ी ही आसानी से और अपने जीवन को संतुलित तरीके से जीते हुए अपना सकते हैं ।


★ और इन सभी क्रियाओं को कर सकते हैं ।


योग सूत्र में वह 8 इस प्रकार है।


 प्रथम है यम नियम अगला है ।


आसन फिर है, प्राणायाम , अगला है प्रत्याहार, 


फिर आता है धारणा, ध्यान और समाधि 


यह आठ प्रकार के अंग हैं, जिनके द्वारा हम अपने जीवन को अलग-अलग आयामों में ले जाते हैं, और अंत में उस जीवन के अंतिम लक्ष्य को प्राप्त करते हैं। 


जीवन के अंतिम कर्तव्य को प्राप्त करते हैं और उसके बारे में जानते हैं ।


योग के बारे में जानने की एक अनंत प्रक्रिया है, और इस प्रक्रिया से जुड़ना एक अनंत आनंद को प्राप्त करने जैसा है।

★  क्योंकि योग हमें इस ब्रह्मांड की छोटी से छोटी इकाई तक ले जाता है और उस इकाई से हमें पूर्ण रूप से जोड़ता है , जिससे हम इस ब्रह्मांड के सभी मूल रहस्य को जान पाते हैं।


 फिर हमारे लिए अपने जीवन में कुछ भी प्राप्त करने जैसा शेष नहीं बचता है।


 मैं यह नहीं कह रहा हूं कि योग हमें वंचित रखता है।


 बल्कि हम वह सब प्राप्त कर लेते हैं, कि हमें कुछ और प्राप्त करने की आवश्यकता ही नहीं रहती है।


 जब हमारी आवश्यकता ही समाप्त हो जाती है और यह क्रिया अनंत रूप से चलती रहती है।


 तो हमें फिर किसी और चीज में मन लगाने की क्या आवश्यकता हो ही नहीं सकती।

 योग के द्वारा हम अनेक सिद्धियों शक्तियों और अनेक संभावनाओं को विकसित कर पाते हैं ।


जिनमें अष्ट सिद्धियां हैं , नव निधियाँ है, दिव्य दृष्टि, टेलीपैथी, हिप्नोटिज्म, मेसमेरिज्म और अनेक प्रकार के चमत्कार होते हैं ।

उनको हम अपने जीवन में विकसित कर सकते हैं।

★★ आज विज्ञान और वैज्ञानिक भी मानते हैं की हमारे मस्तिष्क की क्षमता अनंत है, अद्भुत है।


 लेकिन हम अभी तक अपने मस्तिष्क को सामान्य रूप से केवल 5% से भी कम जानते हैं। या 5% से भी कम उपयोग में लेते हैं।


 जब हम 5% से भी कम उपयोग में लेकर भी अनेक प्रकार के  जिन्हें देखकर हमें आज भी अचंभित होने का कारण मिल जाता है।


 तो आप सोच सकते हैं ,कि हमारे मस्तिष्क की 100% क्षमताओं तक पहुंचना कितना अद्भुत होगा इसके बारे में हम कल्पना भी नहीं कर सकते हैं ।


और यह कार्य तभी संभव है जब  विज्ञान और योग दोनों सम्मिलित रूप से इस कार्य को आगे बढ़ाएं ना ही केवल योग इस कार्य को शीघ्र संपन्न कर सकता है । 


और ना ही केवल विज्ञान इस कार्य को इसके अंतिम चरण तक पहुंचा सकती है ।


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इसलिए योग और विज्ञान को साथ साथ लेकर उन रहस्यों के बारे में जानना चाहिए तभी हम अपने मस्तिष्क के 100% आयामों और 100% संभावनाओं के बारे में रहस्य के बारे में जान पाएंगे ।


यह बहुत ही विचित्र बात है, इस छोटे से मस्तिष्क में इस ब्रह्मांड की सभी क्रिया के मौजूद होने के बावजूद और इन क्रियाओं को नियंत्रित करने की सारी प्रक्रियाएं हमें पता होने के बावजूद कोई भी इस क्रिया को करने के लिए अपने आप को संयमित रूप से इस कार्य में लगा नहीं सका।

 और नाही कोई उस लक्ष्य को प्राप्त कर सका और जिन्होंने इस लक्ष्य को प्राप्त कर लिया है। उनको हम आज भगवान मानते हैं और यह मान लेते हैं, कि भगवान के बराबर कौन हो सकता है इसलिए यह करना असंभव सा प्रतीत होता है।


yoga with adriene | 

Yoga For Stress Relief – 7 Minute Practice


 वर्तमान समय में वैज्ञानिकों ने अनेक प्रकार की खोजें करके यह साबित कर दिया है कि हम इस ब्रह्मांड के अंदर अनेक प्रक्रियाओं को बदलने में कारगर है ।


लेकिन मैं शुरू से अंत तक या शुरू से आज तक की जो भी खोजे हैं।

 उन पर नजर डालता हूं तो मुझे उनमें इस ब्रम्हांड में विकास के अनुपात में विनाश ज्यादा दिखाई देता है।

 और आज वैज्ञानिक स्वयं इस बात को मानते हैं की इतने समय उतने समय बाद यह ब्रह्मांड या हमारी जो पृथ्वी है, वह मनुष्य के लिए स्थाई नहीं रह सकती अर्थात इस पृथ्वी पर ऐसा वातावरण स्थापित हो जाएगा। बल्कि यूं कहें कि हम मनुष्य ही ऐसा वातावरण पैदा कर देंगे कि यह हमारे लायक नहीं रहेगी।


 और वैज्ञानिक यह भी दावा कर रहे हैं कि कुछ समय बाद आने वाले समय में हम मंगल ग्रह यानि कोई एक नई पृथ्वी स्थापित कर देंगे ।


लेकिन एक बार इस बात को सोचना आवश्यक है कि जिस ग्रह पर अभी तक जीवन की कोई संभावना दिखाई नहीं देती जहां पर जीवन अभी तक मौजूद नहीं है या जीवन को वहां पर स्थापित होने के लिए जिन चीजों की आवश्यकता है।


 जैसे वातावरण की आवश्यकता है वहां पर मौजूद नहीं है और वहां जीवन को स्थापित करने की संभावना देख रहे हैं ।


Kundalini Yoga for anxiety disorder Relief and kundKunda Awakening Meditation for beginners


लेकिन अगर यह किया जाए कि जिस पृथ्वी पर हम रहते हैं, उस पर योग, प्रकृति, आध्यात्मिक और कुछ समर्पण भावना पैदा करके इसी पृथ्वी को फिर से उस संभावना तक स्थापित करें जहां यह जीवन के लिए उपयुक्त हो और इसकी उम्र हजार वर्ष नहीं बल्की अनंत वर्षों तक बढ़ जाए ।


और यह कार्य मनुष्य ही कर सकता है क्योंकि जो मनुष्य इस पृथ्वी को उसका घर तक ले जा सकता है जहां इसका विनाश दिखाई देता है ।


तो वही मनुष्य उस स्थिति तक ले जा सकता है जहां यह पहले थी।


 इसको करने के लिए केवल इतना सा कार्य करना है, कि योग को अपनाएं, रासायनिक प्रक्रियाओं को कम करें।

 तथा अपने जीवन को प्रकृति की तरफ ले जाएं ।

इसके साथ साथ जो हमने प्रकृति के अंदर हानी की है अर्थात पेड़ पौधे और इस पृथ्वी पर मौजूद जो पांच प्रकार के तत्व है जैसे जल, हवा, अग्नि, आकाश और स्वयं पृथ्वी स्वस्थ रखें ।


तथा इनमें पहले के समान वृद्धि करें इसके लिए पेड़ पौधे लगाएं।


 जितना हो सके उतना रासायनिक या कृत्रिम चीजों का उपयोग कम करें तथा इसी विनाश जनित प्रक्रियाओं पर रोक लगाएं जो विकास की दर कम रखती हो और विनाश ज्यादा करती  हो।


 मेरी अपोस्ट योग से संबंधित है, लेकिन इस पोस्ट में मैंने इस ब्रह्मांड की उन सभी समस्याओं को चर्चा का विषय बनाया है, अब आप सोच रहे होंगे कि यह इतनी लंबी जो बकवास की है वह क्यों है?


 तो मेरा यही कहना है , की योग अगर आप अपने जीवन में लाते हो तो केवल उसे शारीरिक स्वास्थ्य के लिए ही उपयोग ना करें क्योंकि योग केवल शारीरिक आयाम तक स्थाई नहीं है।


 यह मानसिक आत्मिक प्राकृतिक और ब्रह्मांड की उन सभी क्रियाओं से संबंध रखता है और मुझे लगता है, कि योग के द्वारा हम इन सभी प्रकार के आवश्यक इकाइयों को व्यवस्थित कर सकते हैं।


 और अपने वातावरण को अपनी पृथ्वी को और अपनी आने वाली पीढ़ियों को एक सुखमय आनंदमय और प्रकृति से भरपूर, हरियाली से भरपूर, खुशहाली से भरपूर जीवन दे सकें।


           ताकि वह हमें उनके जीवन में समस्याएं देखकर यह न कहें की जाने वालों ने हमारे लिए इतनी समस्याएं छोड़ कर हमें बहुत ही अव्यवस्थित अवस्था में ला दिया।


 इस पोस्ट को पढ़ने वालों से मेरी एक ही गुजारिश है कि अपने जीवन में योग को जगह दें और प्रकृति के साथ संवेदनशील बनें और कम से कम अपने जीवन में 2 पेड़ लगाने की कृपा करें ।


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और एक बात कहना चाहूंगा की अपने आसपास के वातावरण में जितनी हो सके सकारात्मकता फैलाएं जिससे आपके जीवन में अपने आप ही सकारात्मक चीजें होने लग जायेंगी।


 क्योंकि हमारे आसपास का वातावरण सकारात्मक होता है और हम उसी वातावरण में कार्य करते हैं तो यह तय हैं कि हमारा जीवन भी सकारात्मक संभावनाओं से जुड़ जाएगा।



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